बात शुरू होती है मेरी नानी से, मेरी नानी की उम्र तकरीबन ८० वर्ष के लगभग होगी, जब वो चल बसीं थी, वो भी मकरसंक्रांति के दिन ही, और मैं बारहवीं की बोर्ड परीक्षा देने वाला था। मेरी माँ मेरी नानी की एक लोति बेटी थी पर उनके ५ हटे-कटे, शराबी बेटे थे। नानाजी के केंसर की बीमारी से पीड़ित होने के कारण जल्द देहावसान के बाद नानी अपने बेटों से अलग हमरे यहाँ ही रहने लगी थी । मेरे माँ के शराबी बलिष्ट भाई अपने हिस्से का सारा कुछ शराब, शबाब और जुए में काफी पहले ही उड़ा दिया था। तब से वो क्या करते थे, कैसे करते थे, वो तो नहीं पता, पर हर समय शराब के नशे में ही धुँत्त रहते थे। वो कभी-कभी नानी से मिलने के बहाने हमारे घर भी आया करते थे। तब घर का माहोल ऐसा होता था जैसे एक साथ कई कशाब होटल ताज में गुस आये हों। इसिलए बच्चों के प्यारे मामा का, मेरे घर आना पसंद नहीं करता था मैं।
परन्तु, सारी असम्भावाताओं को दरकिनार करते हुए मेरी नानी मेरे सामने थी, मुझे आहाचर्य हुआ पर मेरी खुशी के सामने वो बहुत छोटी पड़ गयी। पर नानी की हालत बहुत पतली थी। मेरी माँ, अपनी माँ की सेवा-श्रुषा में कभी कोई कमी नहीं होने देती थी, उनका मानना था की इससे उन्हें पुण्य प्राप्त होगा। फिर वों उनके कमायें पुण्य मेरे द्वारा उनकी सेवाश्रुषा में काम आयेंगें।
परन्तु, सारी असम्भावाताओं को दरकिनार करते हुए मेरी नानी मेरे सामने थी, मुझे आहाचर्य हुआ पर मेरी खुशी के सामने वो बहुत छोटी पड़ गयी। पर नानी की हालत बहुत पतली थी। मेरी माँ, अपनी माँ की सेवा-श्रुषा में कभी कोई कमी नहीं होने देती थी, उनका मानना था की इससे उन्हें पुण्य प्राप्त होगा। फिर वों उनके कमायें पुण्य मेरे द्वारा उनकी सेवाश्रुषा में काम आयेंगें।